


सरकार भले ही सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने के बड़े-बड़े दावे कर रही हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। उत्तराखंड के लोहाघाट नगर स्थित राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय की बदहाल स्थिति इसका जीता-जागता उदाहरण है। वर्ष 1953 में बना यह विद्यालय भवन अब जर्जर हो चुका है और बारिश के मौसम में इसकी छत टपकने लगती है। इसके बावजूद बच्चे उसी भवन में पढ़ाई करने को मजबूर हैं।
छत से टपकता पानी, प्लास्टिक शीट से बचाव की कोशिश
प्रधानाचार्य महेश चंद्र उप्रेती ने अस्थायी समाधान के तौर पर छत में पॉलिथीन लगवाकर बारिश के पानी से किसी हद तक सुरक्षा देने की कोशिश की है। लेकिन यह उपाय भी बच्चों की सुरक्षा की गारंटी नहीं है। बरसात के दौरान छत से पानी टपकता है और दीवारों में दरारें साफ नजर आती हैं।
एसएमसी बैठक में अभिभावकों की नाराजगी, भवन निर्माण की मांग
विद्यालय की खस्ता हालत को लेकर हुई एसएमसी (स्कूल मैनेजमेंट कमेटी) की बैठक में अभिभावकों ने कड़ी नाराजगी जताई। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर बच्चों के साथ कोई दुर्घटना होती है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार, जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग की होगी। अभिभावकों ने कई बार जिलाधिकारी व शिक्षा अधिकारियों को भवन निर्माण के लिए ज्ञापन सौंपे, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
क्या किसी हादसे का इंतजार कर रहा है शिक्षा विभाग?
स्थानीय लोगों और अभिभावकों का कहना है कि विभाग की यह लापरवाही बेहद गंभीर है और ऐसा लगता है मानो शिक्षा मंत्री व प्रशासन किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार कर रहे हों। प्रधानाचार्य उप्रेती ने भी माना कि स्कूल को जल्द एक नए और सुरक्षित भवन की आवश्यकता है।
अब देखना यह है कि जिम्मेदार कब जागेंगे और कब इन बच्चों को सुरक्षित और सुविधाजनक शिक्षा का अधिकार मिलेगा।